नई दिल्ली । हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए पवित्र माने जाने वाली कैलाश मानसरोवर की यात्रा अब आसान हो गई है । श्रद्धालुओं को अब यात्रा पूरी करने में महज एक हफ्ते का वक्त लगेगा, पहले ये यात्रा पूरी करने में दो से तीन हफ्ते का वक्त लगता था ।

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धारचूला से लिपुलेख के बीच बनी सड़क
सीमा सड़क संगठन यानि बीआरओ की अथक मेहनत ये तैयार हुई ये सड़क उत्तराखंड के धारचूला के घाटीबगड़ से निकलती है और कैलाश-मानसरोवर के प्रवेश द्वार लिपुलेख दर्रा पर समाप्त होती है। 80 किलोमीटर लम्बी इस सड़क की ऊंचाई 6,000 से 17,060 फीट तक है। इस परियोजना के पूरा होने के साथ, अब कैलाश-मानसरोवर के तीर्थयात्री जोखिम भरे व अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाके के मार्ग पर कठिन यात्रा करने से बच सकेंगे। वर्तमान में, सिक्किम या नेपाल मार्गों से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा में लगभग दो से तीन हफ्ते का वक्त लगता है। लिपुलेख मार्ग में ऊंचाई वाले इलाकों से होकर 90 किलोमीटर लम्बे मार्ग की यात्रा करनी पड़ती थी। इसमें बुजुर्ग यात्रियों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
अब चीन में कम भारत में ज्यादा है यात्रा मार्ग
अब तक कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालु सिक्किम और नेपाल के रास्ते सड़क मार्ग से होते हुए कैलाश पर्वत तक जाते रहे हैं । इसमें भारतीय सड़कों पर लगभग 20 फीसदी यात्रा और चीन की सड़कों पर लगभग 80 फीसदी यात्रा करनी पड़ती थी। घटियाबगड़-लिपुलेख सड़क के खुलने के साथ, यह अनुपात उलट गया है। अब मानसरोवर के तीर्थयात्री भारतीय भूमि पर 84 फीसदी और चीन की भूमि पर केवल 16 फीसदी की यात्रा करेंगे।
चीन में स्थित है कैलाश पर्वत
धार्मिक आस्था का केंद्र कैलाश पर्वत चीन की सीमा में है । ये अति दुर्गम इलाकों में से आता है । वर्तमान में श्रद्धालु पिथौरागढ़ के धारचूला से भारत चीन की सीमा लिपुलेख तक जाते हैं जिसमें आमतौर पर 21 दिनों का वक्त लगता है । लिपुलेख से आगे की यात्रा चीन की धरती पर तय करनी होती है। नए मार्ग के निर्माण के बाद भारत की सीमा में होने वाली ये यात्रा महज आसान हो जाएगी और श्रद्धालु गाड़ियों से चीन की सीमा तक जा सकेंगे ।

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कई मुश्किलों से जूझकर बीआरओ ने बनाई सड़क
धारचूला से लिपुलेख तक की 80 किलोमीटर की इस सड़क का निर्माण काफी चुनौतीपूर्ण रहा । सीमा सड़क संगठन के इंजीनियर और कर्मचारी लगातार बर्फबारी, अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में बेहद कम तापमान में काम करते रहे । दुर्गम इलाकों में होने की वजह से साल में सिर्फ 5 महीने ही यहाँ काम किया जा सकता था । कैलाश-मानसरोवर यात्रा भी जून से अक्टूबर के बीच काम के मौसम के दौरान ही होती थी। स्थानीय लोग भी अपने लॉजिस्टिक्स के साथ इस दौरान ही यात्रा करते थे। व्यापारी भी यात्रा (चीन के साथ व्यापार के लिए) करते थे। इस तरह सड़क के निर्माण के लिए दिन में कुछ घंटे तक का ही वक्त मिल पाता था ।
इसके अलावा इन इलाकों में बादल फटने की घटनाओं की वजह से भी काम करना मुश्किल था । बीआरओ के कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इनके 25 उपकरण भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए । तमाम मुश्किलों के बावजूद 2 साल में बीआरओ ने आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर काम पूरा किया ।
इस अहम सड़क मार्ग के बन जाने से स्थानीय व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा ।